Panchayat Season 4 Review: अमेज़न प्राइम वीडियो की बहुचर्चित वेब सीरीज ‘पंचायत’ का चौथा सीजन रिलीज हो चुका है। तीन सीजन की शानदार सफलता के बाद दर्शकों को इस सीजन से काफी उम्मीदें थीं। लेकिन क्या यह सीजन उन उम्मीदों पर खरा उतर पाया? क्या अब भी पंचायत वही देसीपन, ह्यूमर और इमोशन लेकर लौटी है? चलिए जानते हैं इस बार की कहानी और इसकी खासियतें, बिना किसी स्पॉयलर के।
शुरुआत दमदार, लेकिन कहानी ने किया धीरे-धीरे निराश(Panchayat Season 4 Review)
सीजन 4 की शुरुआत में दर्शकों को वही पुराना पंचायत वाला मजा मिलता है। सचिव जी का शराब पीकर भूषण से माफी मांगना हो या मंजू देवी द्वारा अपने घायल पति को ताना देना – इन सीन्स में वही चुटीला हास्य और देसी खुशबू है जिसके लिए ये सीरीज मशहूर है। बनराकस और विधायक जी के भोजपुरी डांस वाले सीन हों या प्रधान जी के घर छापेमारी के बाद की कॉमिक सिचुएशन – शुरुआती एपिसोड बांधकर रखते हैं।
लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, विशेषकर पांचवें और छठे एपिसोड के बाद, वहां से दर्शक कहानी से थोड़ा डिस्कनेक्ट होने लगते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि सीजन का फोकस धीरे-धीरे गांव की राजनीति, पंचायत चुनाव, बनराकस-क्रांति देवी और पूर्व विधायक की जोड़-तोड़ पर ज्यादा हो जाता है।
स्ट्रॉन्ग केरेक्टर्स, लेकिन कमजोर क्लाइमेक्स(Panchayat Season 4 Review)
पिछले सीजन तक जिस तिकड़ी – प्रधान जी, सचिव जी, प्रह्लाद चा और विकास – के बीच की बॉन्डिंग इस सीरीज की जान थी, वह इस सीजन के आखिरी कुछ एपिसोड में फीकी नजर आती है। इन एपिसोड्स में सीरीज राजनीतिक ड्रामा के चक्कर में उलझती नजर आती है और वही पुराने पंचायत टच की कमी खलने लगती है।
हालांकि, सचिव जी और रिंकी की अधूरी लेकिन प्यारी लव स्टोरी थोड़ी राहत जरूर देती है। लेकिन यह भी उतनी उभरकर सामने नहीं आती, जितनी दर्शकों को उम्मीद थी। आखिरी एपिसोड तक आते-आते कहानी इतनी धीमी और बिखरी लगती है कि कोर फैंस को यह व्यक्तिगत रूप से निराश कर सकती है।
डायरेक्शन और स्क्रिप्टिंग में आई हल्की गिरावट(Panchayat Season 4 Review)
निर्देशक दीपक मिश्रा और लेखक अक्षत विजयवर्गीय ने पहले कुछ एपिसोड में पुराने ‘पंचायत’ का मसाला बरकरार रखा है। संवादों में अब भी वही देसी मिठास है। सचिव जी का “ई ससुर…” कहना और प्रधान जी का भी वही जुमला अपने ससुर जी के लिए इस्तेमाल करना – यह सब आज भी दर्शकों को हंसी में डुबो देता है।
लेकिन आखिरी के दो-तीन एपिसोड जैसे जल्दी में बनाए गए लगते हैं। सिचुएशन दोहराई जाती हैं, कुछ सीन्स खिंचे हुए महसूस होते हैं और पुराने इमोशनल पंच मिसिंग रहते हैं।
कलाकारों की परफॉर्मेंस बनी सबसे मजबूत कड़ी(Panchayat Season 4 Review)
इस बार जीतेन्द्र कुमार (सचिव जी) ने अपने किरदार में थोड़ा नया रंग दिखाया है, खासकर रोमांटिक दृश्यों में उनका अभिनय दिल जीतता है। रघुवीर यादव (प्रधान जी) हमेशा की तरह इस सीरीज की रीढ़ हैं। नीना गुप्ता को इस बार ज्यादा स्क्रीन टाइम मिला और उन्होंने हर सीन को बखूबी निभाया।
फैसल मलिक (प्रह्लाद चा), चंदन रॉय (विकास) और सानविका (रिंकी) ने भी अपनी भूमिकाओं में कमाल किया। दुर्गेश कुमार (भूषण) और सुनीता राजवर (क्रांति देवी) अपने किरदारों में इतनी नफरत भरते हैं कि दर्शकों को उनसे चिढ़ होना स्वाभाविक लगता है – यहीं उनकी एक्टिंग का असली कमाल है।
आशोक पाठक (विनोद) को इस बार भरपूर स्क्रीन स्पेस मिला, जिसे उन्होंने पूरी ईमानदारी से निभाया। पंकज झा (विधायक जी) आपको मिक्स्ड इमोशंस देते हैं, जबकि सांसद के छोटे लेकिन असरदार रोल में स्वानंद किरकिरे दिल जीत लेते हैं।
देखें या ना देखें?(Panchayat Season 4 Review)
अगर आप ‘पंचायत’ के हार्डकोर फैन हैं, तो आप यह सीजन शायद पहले ही पूरा देख चुके होंगे – और संभव है कि थोड़ा मायूस भी हुए हों। लेकिन अगर आप इसे पहली बार या हल्की-फुल्की देसी कॉमेडी के शौकीन हैं, तो यह सीजन आपके लिए एक बेहतर अनुभव हो सकता है।
संक्षेप में, पंचायत 4 कहानी में उतना दम नहीं ला पाई जितना पिछले सीजन में था, लेकिन कलाकारों की परफॉर्मेंस और कुछ दिल को छू लेने वाले सीन इसे एक बार देखने लायक जरूर बनाते हैं।